हैलो दोस्तों ! आयुर्वेद और साहित्य ब्लॉग में आपका स्वागत है . आज के लेख में हम आपको बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय बतायेंगे . इस लेख में हम यह भी जानेंगे और समझेंगे कि आजकल आम समस्या बन चुके इस अर्श या बवासीर [ Piles ] रोग से किस प्रकार बचा जा सकता है .
अर्श या बवासीर क्या होता है ?
बवासीर को आयुर्वेद में अर्श कहा जाता है . आयुर्वेद अनुसार “अरिवत प्राणान् श्रृणाति अर्शः ” शत्रु के सामान प्राणों को कष्ट देने वाला अर्श होता है .
अर्श गुदा में होने वाला एक रोग है, मलाशय की आन्तरिक दीवारों में सूजन होने के कारण मलत्याग के समय कष्ट होना या खून का निकलना अर्श या बवासीर कहलाता है .
अर्श का अधिष्ठान गुदा होता है और गुदा में तीन वलियाँ होती हैं –
1 . प्रवाहणी 2 . विसर्जनी 3 . संवरणी
आयुर्वेद शास्त्रानुसार वातादि दोष कुपित होकर त्वचा, मांस और मेद को दूषित कर गुदा के पास या मलद्वार के अन्दर मान्सान्कुर उत्पन्न करते हैं जिन्हें अर्श कहते हैं . सामान्य बोलचाल में इसे बवासीर और अंग्रेजी में Piles या Haemorrhoids कहते हैं .
अर्श या बवासीर के प्रकार
शुष्कार्श और रक्तार्श भेद से अर्श दो प्रकार का होता है .
1 . शुष्कार्श में वात या कफ की प्रधानता होती है . इसमें कष्ट अधिक होता है किन्तु स्राव नहीं होता है .
2 . रक्तार्श में पित्त या रक्त की प्रधानता होती है और शौच के समय रक्त का स्राव होता है .
आयुर्वेद में अर्श के तीन प्रकार भी माने गये हैं –
1 . आभ्यंतर [ Internal ]
2 . बाह्य [ External ]
3 . उभय [ Interno – External ]
रोग की अवस्था के अनुसार अर्श के चार प्रकार हैं –
ग्रेड 1 – इसमें गुदा नलिका की अन्दर की परत में हलकी सूजन होती है . अधिक कष्ट नहीं होता .
ग्रेड 2 – इसमें सूजन अधिक होती है और मलत्याग के समय अधिक कष्ट होता है .
ग्रेड 3 – इसमें मलत्याग के समय शौच के साथ खून निकलता है और मान्सान्कुर या मस्से बाहर आ जाते हैं जो अंगुली की सहायता से अन्दर करने पर वापस अन्दर चले जाते हैं .
ग्रेड 4 -इसमें मलत्याग के साथ खून आता है , मस्से बाहर आ जाते हैं और अंगुलि की सहायता से अन्दर करने पर भी मस्से अन्दर नहीं होते .
अर्श या बवासीर रोग क्यों होता है ?
अनुचित आहार और अनुचित जीवन शैली अर्श या बवासीर का मुख्य कारण हैं . मुख्यतया अर्श या बवासीर होने के निम्न कारण हो सकते हैं –
- लगातार कब्ज रहना
- जोर लगा कर मलत्याग करना
- लम्बे समय तक एक स्थान पर बैठना
- साइकिल या मोटर साइकिल की अधिक सवारी करना
- गर्भावस्था में
- मांसाहार का अधिक सेवन करना
- दवाइयों का अत्यधिक सेवन करना
- अधिक उम्र होना
- अधिक वजन होना
- पानी कम पीना
- वंशानुगत होना
अर्श या बवासीर के लक्षण
अर्श या बवासीर होने पर रोगी में निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं –
- मलत्याग के समय कष्ट होता है
- मलत्याग करने पर शौच के साथ खून आता है
- गुदा के पास या गुदा के अन्दर खुजली होती है
- गुदा से स्राव होता है
- अपानवायु का अवरोध होता है
अर्श या बवासीर से बचने के उपाय
अनुचित आहार और अनुचित जीवन शैली अर्श का मुख्य कारण होने से स्वस्थ जीवन शैली और उचित आहार के प्रयोग से इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है . निम्नलिखित उपायों को अपना कर इस रोग से बचा जा सकता है –
- फाइबर युक्त [ रेशेदार ] भोजन का अधिक प्रयोग करें
- पानी अधिक पियें
- लम्बे समय तक एक स्थान पर न बैठें
- कब्ज न होने दें
- रात में ज्यादा देर तक न जागें
- मानसिक तनाव से बचें
- मांसाहार का अधिक प्रयोग न करें
- जंक फ़ूड से बचें
- व्यायाम करें
बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय
बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय क्षार सूत्र है . इस पद्दति में औषध युक्त धागे से बवासीर के मस्से को बांधा जाता है जो कुछ दिनों में मस्से को काट कर गिरा देता है . नीचे बवासीर के मस्सों को सुखाने के कुछ घरेलू उपाय बताये जा रहे हैं –
- हल्दी का चूर्ण और थोर ( स्नुही , सेहुंड ) का दूध मिला कर उसे सावधानी पूर्वक मस्सों पर लेप करें .
- कडवी तोरई को पीस कर उसका लेप बना कर मस्सों पर लगायें .
- कच्चे पपीते का रस मस्सों पर लगायें .
- फिटकरी , नौसादर , नीला थोथा और चूना को नींबू के रस में मिला कर मस्सों पर लेप करें .
- उड़द और तिल के तेल को मिला कर पीस कर मस्सों पर लेप करें .
- बवासीर के मस्सों पर कासीसादि तेल लगायें .
- जीरा पानी में पीस कर बवासीर के मस्सों पर लगायें .
- वचा का चूर्ण तेल में मिला कर पोटली बना कर बवासीर के मस्सों पर सेक करें .
- एरण्ड के पत्तों को पानी में गर्म कर , गर्म पानी का सेक मस्सों पर करें .
- कुचला को घी में घिस कर बवासीर के मस्सों पर सेक करें .
- अर्जुन की छाल का काढा बना कर काढ़े से बवासीर के मस्सों का सेक करें .
- बवासीर के मस्सों पर जात्यादि तेल लगायें .
अर्श या बवासीर रोग में क्या खाना चाहिए ?
खान पान अर्श या बवासीर का मुख्य कारण होने से इस रोग में परहेज [ पथ्यापथ्य ] का विशेष महत्त्व है
पथ्य :- हरी पत्तेदार सब्जियां , गेहूं , पपीता , अंजीर , अंगूर , आंवला , मूली , गाजर , प्याज , टमाटर , लौकी , कद्दू , खीरा , ककड़ी , तरबूज , खरबूजा , पालक , परवल , छाछ , नारियल पानी , फलों का रस , नीबू पानी , व्यायाम बवासीर के रोगियों के लिए लाभदायक हैं .
अपथ्य :- मैदा , बाजरा , तेज मसालेदार भोजन , जंक फ़ूड , मांसाहार , उड़द , गरिष्ठ भोजन , चाट पकौड़ी , कचौरी , समोसा बवासीर के रोगियों के लिए नुकसान दायक और रोग को बढाने वाले होते हैं .
बवासीर का रामबाण आयुर्वेदिक इलाज
निदान परिवर्जन , स्वस्थ जीवन शैली और अच्छा खान पान अर्श या बवासीर रोग के उपचार में महत्त्वपूर्ण है . आयुर्वेद में अर्श या बवासीर की चिकित्सा चार विधियों से की जाती है –
- भेषज ( औषध )
- क्षार
- शस्त्र
- अग्निकर्म
औषध चिकित्सा एवं क्षार सूत्र चिकित्सा बवासीर के इलाज के लिए सबसे अधिक प्रयोग की जाती हैं . क्षार सूत्र और औषध चिकित्सा का सम्मिश्रण बवासीर का रामबाण इलाज है .
अर्श या बवासीर मस्से का आयुर्वेदिक उपचार – आयुर्वेद में अर्श रोग के लिए मुख्यतः कान्कायन वटी , चित्रकादि वटी , अर्श कुठार रस , हिंग्वष्टक चूर्ण , पंचसकार चूर्ण , त्रिफला चूर्ण , त्रिफला गुग्गुलु , जात्यादि तेल , कासीसादि तेल , अभयारिष्ट , द्राक्षासव , हरीतकी चूर्ण , पथ्यादि चूर्ण आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है .
अर्श रोग की प्रथम व द्वितीय अवस्था औषध साध्य है तथा आयुर्वेद औषधियों से इसका सहजता से उपचार संभव है . तृतीय और चतुर्थ अवस्था में अर्श रोग के उपचार हेतु क्षार सूत्र विधि सर्वोत्तम है . ‘ क्षार सूत्र ‘ एक औषधीय तत्वों से निर्मित धागा होता है जिसे आयुर्वेद शल्य चिकित्सक द्वारा रोगी के मस्से को बांधा जाता है और कुछ दिनों बाद धागा मस्से सहित स्वतः गिर जाता है . अर्श और भगंदर के लिए क्षार सूत्र सर्वाधिक सफल चिकित्सा है .
बवासीर के घरेलू उपाय
बवासीर के इलाज के लिए घरेलू उपाय निम्नलिखित हैं –
- 3 ग्राम हरड का चूर्ण बराबर गुड के साथ भोजन से पहले लें .
- प्रतिदिन छाछ के साथ हरड़ चूर्ण सेवन करें .
- रोजाना त्रिफला चूर्ण का सेवन करें .
- दही में नमक और अजवाइन का पाउडर मिला कर सेवन करें .
- सहजन के पत्तों का रस पीने से बादी बवासीर में फायदा होता है .
- नीम के फलों की गिरी पीस कर दही के साथ सेवन करें .
- कचनार की छाल पीस कर छाछ के साथ सेवन करें .
गुदा के अन्य रोग
परिकर्तिका और भगंदर भी अर्श के समान गुदा के रोग हैं . सामान्यतः लोग गुदा के सभी रोगों को बवासीर समझ लेते हैं . परिकर्तिका में कर्तनवत वेदना [ काटने जैसी पीड़ा ] होने के कारण इसे परिकर्तिका कहा जाता है . मलत्याग के समय जलन होती है और मल के साथ खून आता है .
गुदा के पास एक फोड़े को भगंदर कहते हैं , यह एक सुरंग या नाली की तरह का घाव होता है जिसका एक छोर गुदा में और दूसरा गुदा के पास त्वचा के ऊपर होता है . औषध और क्षार सूत्र से इसकी चिकित्सा की जाती है .
दोस्तों ” बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय ” आर्टिकल आपको कैसा लगा ? कमेन्ट द्वारा बताना . अगले लेख में अन्य उपयोगी जानकारी के साथ हाजिर होंगे .
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