जंगलों में ऊंचाई पर पायी जाने वाली आयुर्वेद औषधि चिरायता का प्रयोग भारत में प्रायः बुखार के लिए किया जाता है . चिरायता के औषधीय उपयोग बुखार के अलावा अन्य कई रोगों में हैं . इस लेख में हम बता रहे हैं ” चिरायता कितने दिन पीना चाहिए ” और इसके क्या क्या फायदे और नुकसान हैं ?
चिरायता क्या होता है ?
चिरायता ऊंचाई पर पाया जाने वाला एक पौधा है जिसकी ऊंचाई 2 – 4 फुट होती है . यह किरात प्रदेश ( हिमालय का उत्तर पूर्व भाग ) में पाए जाने के कारण एवं रस में तिक्त होने के कारण किराततिक्त भी कहलाता है . इसके अन्य नाम भू निम्ब , सुवर्ण पुष्प , हैम , कैरात , रामसेनक आदि हैं . यह स्वाद में अत्यंत कड़वा होता है .
चिरायता का औषधीय प्रयोग चूर्ण के रूप में , गर्म पानी में फाण्ट के रूप में और सादा पानी में भिगो कर किया जाता है .
चिरायता पीने का तरीका
चिरायता का क्वाथ बनाकर नहीं पीना चाहिए . क्वाथ या काढा बनाने से इसके औषधीय गुणों में कमी हो जाती है . क्वाथ के स्थान पर फाण्ट अधिक लाभकारी होता है . फाण्ट बनाने के लिए 2- 3 ग्राम चिरायता पाउडर को आधे कप गर्म पानी में डाल कर उसे कुछ देर के लिए ढक देते हैं और कुछ समय बाद छान कर पी लेते हैं .
इसके अलावा 1 चम्मच चिरायता पाउडर को रात में आधा कप पानी में भिगो कर रख देते हैं . सुबह छान कर उस पानी को पी लेते हैं .
चिरायता पीने के फायदे और नुकसान
चिरायता का प्रयोग आयुर्वेद में दीपन , आमपाचन , पित्तसारक , ज्वरघ्न , कृमिघ्न , रक्तशोधक , शोथहर आदि के रूप में किया जाता है . आइये जानते हैं चिरायता पीने के फायदे और नुकसान क्या हैं ?
चिरायता पीने के फायदे
चिरायता पीने से बुखार में फायदा
चिरायता पीने से सभी तरह के बुखार में फायदा होता है और सदियों से इसका बुखार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है .
चिरायता का प्रयोग त्वचा रोगों में
चिरायता में रक्त्शोधन का गुण पाया जाता है और आयुर्वेद में इसका प्रयोग त्वचा रोगों में किया जाता है . ( यह भी पढ़ें – सफेद दाग का आयुर्वेदिक इलाज )
चिरायता का प्रयोग लिवर के लिए
चिरायता का प्रयोग यकृत विकार ( लिवर सम्बंधित रोगों ) में फायदेमंद होता है .
चिरायता का प्रयोग कृमि रोगों में
चिरायता का पानी पीने से कृमि रोग ( पेट में कीड़े ) में लाभ होता है .
चिरायता का प्रयोग सूजन के लिए
चिरायता में शोथहर गुण होने के कारण यह सूजन को कम करता है .
चिरायता का प्रयोग भूख बढाने में
किसी बीमारी के बाद पाचन सुधारने एवं भूख बढाने में चिरायता का प्रयोग लाभप्रद होता है . ( यह भी पढ़ें – छोटी हरड़ के फायदे )
चिरायता का प्रयोग पीलिया में
पीलिया में शहद के साथ चिरायता के सेवन से फायदा होता है .
चिरायता का प्रयोग खांसी और दमा में
चिरायता कफघ्न और श्वासहर होने के कारण खांसी और श्वास के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है .
चिरायता का प्रयोग डायबिटीज में
डायबिटीज के रोगियों को चिरायता का सेवन करने से खून में शर्करा का स्तर कम होता है , इसलिए मधुमेह रोगियों के लिए चिरायता फायदेमंद होता है .
चिरायता का फायदा वजन कम करने में
चिरायता का पानी पीने से वजन कम करने में मदद मिलती है . ( यह भी पढ़ें – अजवाइन का पानी पीने के फायदे )
चिरायता का लाभ विबंध में
चिरायता विरेचक होने के कारण कब्ज को दूर करता है .
चिरायता पीने के नुकसान
चिरायता का सेवन उचित मात्रा में चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही करना चाहिए . चिरायता का सही प्रयोग नहीं करने से निम्नलिखित नुकसान हो सकते हैं –
- चिरायता की अधिक मात्रा लेने से पेट में जलन और उल्टी हो सकती है .
- चिरायता का अधिक सेवन करने से दस्त हो सकते हैं .
- प्रेगनेंट महिला को इसका सेवन नहीं करना चाहिए .
- स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी इसके सेवन की सलाह नहीं दी जाती .
- जिन लोगों को चिरायता से एलर्जी है उन्हें इसके सेवन से बचना चाहिए .
चिरायता कितने दिन पीना चाहिए ?
चिरायता का प्रयोग विभिन्न रोगों में किया जाता है . इसे पीने की अवधि रोग और रोगी की अवस्था के अनुसार तय की जाती है . ज्वर आदि रोगों में यह 5-7 दिन पिया जाता है . पीलिया आदि में चिरायता का सेवन 10- 15 दिन तक कराया जाता है . त्वचा रोगों में यह 2- 3 महीनों तक भी सेवन कराया जा सकता है किन्तु यह रोग और रोगी की परिस्थिति के अनुसार चिकित्सक तय करता है .
सामान्य रूप से चिरायता का सेवन 30 दिन से अधिक करने पर शरीर को नुकसान की संभावना होती है . इसलिए आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देशानुसार ही इसके सेवन की सलाह दी जाती है .
FAQ
प्रश्न – चिरायता कौन कौन सी बीमारी में काम आता है ?
उत्तर – चिरायता का प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा ज्वर , कुष्ठ ( त्वचा रोग ) , पीलिया , कृमि रोग आदि में किया जाता है .
प्रश्न – चिरायता पीने से क्या नुकसान हैं ?
उत्तर – चिरायता के अधिक सेवन से अतिसार ( दस्त ) हो सकते हैं . इसके कडवे स्वाद के कारण उल्टी होने की संभावना है . यह खून में शर्करा का स्तर कम करता है इसलिए डायबिटीज की दवाइयां लेने वालों के खून में शुगर का स्तर अधिक कम हो सकता है . इसलिए मधुमेह रोगियों को इसके सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए . गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को भी इसके सेवन से नुकसान की संभावना होती है .
प्रश्न – कालमेघ और चिरायता में क्या अंतर है ?
उत्तर – कालमेघ और चिरायता दो अलग अलग आयुर्वेद औषधियां हैं जो स्वाद में कडवी और एक जैसी होने के कारण भ्रम होता है .
प्रश्न – भारत में चिराता का पौधा कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर – यह मुख्य रूप से हिमालय के उत्तर पूर्व भाग , हिमाचल प्रदेश , अरुणाचल प्रदेश के पहाडी क्षेत्रों में पाया जाता है .
दोस्तों , इस आर्टिकल में हमने चिरायता पीने के फायदे और नुकसान क्या हैं तथा चिरायता कितने दिन पीना चाहिए यह जाना . अगले लेख में अन्य किसी उपयोगी और रोचक जानकारी के साथ हाजिर होंगे .
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