कौन कहता है कि ख़ुशी पर वश है सबका
निगाहों में जहालत देख कर कुशी काफूर हो जाती है .
आसमानों में उड़ने की तमन्ना मंजिलों को
पाने की ख्वाहिश क्यों किसी के हाथों चूर हो जाती है .
वो कहे हंस तो हँसना वो कहे रो तो रोना है
आखिर क्या है जो जिन्दगी इस तरह मजबूर हो जाती है .
रात की स्याही का खौफ क्यूँ कर हो
अँधेरे भी रास आने लगते हैं जब चांदनी दूर हो जाती है .
डॉ. राजेन्द्र वर्मा ‘ राजन ‘
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