जात्यादि तेल एक आयुर्वेदिक औषधियों से निर्मित तेल है जिसका उपयोग घाव को भरने , पाइल्स , फिस्टुला , फिशर आदि में किया जाता है . जात्यादि तेल फिशर के इलाज में महत्त्वपूर्ण उपयोगिता सिद्ध करता है . शार्ङ्गधर संहिता में जात्यादि तेल को व्रण रोपक ( घाव भरने वाला ) योग माना गया है .
जात्यादि तेल बनाने की विधि
आयुर्वेद औषधियों से निर्मित जात्यादि तेल अर्श ( पाइल्स ) , भगंदर ( फिस्टुला ) , परिकर्तिका ( फिशर ) , जले हुए घाव में , गंभीर घाव में , चर्म रोगों आदि में प्रभावी औषधि का कार्य करता है .
जात्यादि तेल के घटक
- जाती ( चमेली )
- नीम
- पटोल
- करंज
- मुलेठी
- कूठ
- हल्दी
- दारु हल्दी
- कुटकी
- मंजीठ
- पद्माख
- लोध्र
- हरीतकी
- नील कमल
- नीला थोथा
- सारिवा
- मोम
- तिल तेल
- पानी
जात्यादि तेल बनाने की विधि
- सभी औषध द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर पानी में पीस कर कल्क ( लुग्दी ) बना लेते हैं .
- इस कल्क से चार गुना मात्रा में तिल का तेल और तेल से चार गुना पानी मिला कर धीमी आंच पर पकाते हैं .
- पकते पकते जब सारा पानी जल जाए और तेल एवं कल्क शेष रहे तब इसे आग से उतार लेते हैं .
- इसे छान कर लुगदी और तेल को अलग कर लेते हैं .
- यह तेल सुरक्षित कर लेते हैं और जात्यादि तेल तैयार हो जाता है .
जात्यादि तेल के फायदे
जात्यादि तेल का विभिन्न प्रकार के व्रण , त्वचा रोग , गुद रोग ( पाइल्स , फिस्टुला , फिशर आदि ) में चिकित्सकीय प्रयोग किये जाते हैं और इसके बहुत अच्छे लाभ प्राप्त होते हैं . आइये जानते हैं जात्यादि तेल के फायदे किन किन रोगों में हैं –
घाव भरने में जात्यादि तेल अति लाभकारी
जात्यादि तेल सभी प्रकार के व्रण ( घाव ) में रोपण ( भरने ) का तथा व्रण शोधन का भी कार्य करता है . जात्यादि तेल के प्रयोग से घाव शीघ्र भर कर सूख जाते हैं .
भगंदर एवं बवासीर में जात्यादि तेल का उपयोग
भगंदर ( फिस्टुला ) के घाव को भरने के लिए तथा पाइल्स ( बवासीर ) के मस्से को क्षार सूत्र से काटने के बाद जात्यादि तेल लगाने से बहुत लाभ होता है . ( यह भी पढ़ें – भगंदर का बिना ऑपरेशन इलाज )
जलने पर जात्यादि तेल का प्रयोग
जलने से हुए व्रण में जात्यादि तेल का प्रयोग अति लाभप्रद है और जात्यादि तेल लगाने से जलने से हुआ घाव शीघ्र भरता है .
जात्यादि तेल फिशर के इलाज में उपयोगी
जात्यादि तेल फिशर ( परिकर्तिका ) के इलाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है . फिशर होने पर जात्यादि तेल की बस्ती ( गुदा में जात्यादि तेल प्रवेश कराना ) से फायदा होता है गुदा में जलन से राहत मिलती है . ( यह भी पढ़ें – प्राइवेट पार्ट में खुजली और जलन हो तो क्या करें )
विषाक्त व्रण में जात्यादि तेल से लाभ
कीड़े , मकोड़े , मकड़ी आदि के स्पर्श से हुए व्रण में जात्यादि तेल लगाने से शीघ्र लाभ होता है और जलन एवं खुजली से राहत मिलती है .
त्वचा रोगों में जात्यादि तेल के फायदे
दाद , खाज , खुजली , विसर्प आदि त्वचा रोगों में जात्यादि तेल लगाने से फायदा होता है .
जात्यादि तेल के नुकसान
सामान्यतः जात्यादि तेल के नुकसान देखने को नहीं मिलते किन्तु जिन लोगों को जात्यादि तेल में प्रयुक्त घटक द्रव्यों में किसी से एलर्जी हो तो उनके लिए यह नुकसानदायक हो सकता है . ऐसे व्यक्तियों को तुरंत इसका प्रयोग बंद कर देना चाहिये . जात्यादि तेल का सिर्फ बाह्य प्रयोग किया जाता है , इसका आन्तरिक प्रयोग नुकसानदेह हो सकता है . जात्यादि तेल का प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करना चाहिए .
जात्यादि तेल का उपयोग कैसे करें ?
- व्रण को किसी एंटी सैप्टिक द्रव्य अथवा जात्यादि तेल से अच्छी तरह साफ़ करें .
- साफ़ करने के बाद व्रण पर जात्यादि तेल का हल्का लेपन करें .
- उसके बाद जात्यादि तेल से भिगोया हुआ पिचु ( कॉटन स्वैब ) व्रण पर रख कर पट्टी बाँध दें .
- फिशर में जात्यादि तेल को सिरिंज की सहायता से गुदा में प्रवेश कराया जाता है .
- जले हुए घाव को एंटी सैप्टिक से साफ़ करके व्रण को सुखा कर जात्यादि तेल का लेप लगाना चाहिए .
FAQ
प्रश्न – क्या हम बवासीर के लिए जात्यादि तेल का उपयोग कर सकते हैं ?
उत्तर – बवासीर होने पर जात्यादि तेल के इस्तेमाल से गुदा मार्ग में स्निग्धता बढ़ती है और मलावरोध दूर होता है . सूजन और दर्द में कमी होती है , इसलिए बवासीर में जात्यादि तेल का उपयोग फायदेमंद होता है .
प्रश्न – त्वचा के लिए जात्यादि तेल का उपयोग कैसे करें ?
उत्तर – त्वचा रोगों में जात्यादि तेल को कॉटन की सहायता से प्रभावित स्थान पर हल्का लेप करें .
दोस्तों , आयुर्वेद और साहित्य ब्लॉग के इस आर्टिकल में आपने जाना कि जात्यादि तेल फिशर के लिए किस तरह उपयोगी है एवं जात्यादि तेल के फायदे किस किस रोग में होते हैं . अगले लेख में अन्य किसी उपयोगी और रोचक जानकारी के साथ हाजिर होंगे .
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