आयुर्वेद अनुसार कैसी हो बरसात के मौसम में जीवन शैली ? जानिये वर्षा ऋतु चर्या के बारे में .

बरसात का मौसम ( वर्षा ऋतु ) का आयुर्वेद में एक विशेष महत्व है क्योंकि इस समय शरीर में दोषों ( वात , पित्त , कफ ) का असंतुलन होने से शरीर बीमारियों के प्रति संवेदनशील होता है. आयुर्वेद अनुसार ऋतु चर्या का पालन करने से वर्षा ऋतु में होने वाली सामान्य समस्याओं से बचा जा सकता है और शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है .

सामान्यतः जुलाई से सितंबर के बीच की अवधि को वर्षा ऋतु माना जाता है . भारी वर्षा, उच्च आर्द्रता, और बदलते हुए तापमान के कारण शरीर का आंतरिक संतुलन प्रभावित होता है, जिससे पाचन, प्रतिरक्षा, और अन्य शारीरिक प्रणालियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है .

आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु में वात दोष की वृद्धि, पित्त दोष का संचय और कफ दोष का ह्रास होता है . इन दोषों के असंतुलन से शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए विशेष आहार विहार ( जीवनशैली ) का पालन करना चाहिए . आइये जानते हैं आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु चर्या के बारे में .

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बरसात के मौसम में शरीर पर दोषों का प्रभाव

वर्षा ऋतु या बरसात के मौसम में तीनों दोषों का शरीर में निम्नानुसार प्रभाव होता है :

  • वात दोष: वर्षा ऋतु की ठंडी और शुष्क प्रकृति के कारण शरीर में वात दोष की वृद्धि होती है, जिससे जोड़ों में दर्द, सूजन, और अपच ( अजीर्ण ) जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं.
  • पित्त दोष: वर्षा ऋतु में पित्त का संचय होता है, जिससे त्वचा में जलन, अम्लता ( एसिडिटी ) और अन्य पित्तजनित समस्याएँ हो सकती हैं.
  • कफ दोष: इस मौसम में कफ दोष का स्तर सामान्य से कम होता है, लेकिन अत्यधिक नमी के कारण आलस्य , तंद्रा और श्वसन सम्बंधित समस्या हो सकती है .

बरसात के मौसम में रखी जाने वाली सावधानियां

आयुर्वेद अनुसार बाहरी वातावरण में बदलाव का सीधा असर शरीर के आंतरिक संतुलन पर पड़ता है. इस संतुलन को बनाए रखने के लिए ऋतु अनुसार आहार और जीवनशैली में परिवर्तन करना चाहिए . वर्षा ऋतु के दौरान ठंड और नमी के कारण शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता और जठराग्नि कमजोर हो जाती है, इसलिए आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतुचर्या का पालन करना शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है .

वर्षा ऋतु ( बरसात के मौसम ) में सामान्यतः निम्नलिखित सावधानियां बरती जानी चाहिए :

  • नमी से बचाव – वात दोष के बढ़ने से शरीर में ठंडक और शुष्कता बढ़ती है, इसलिए नमी से बचना चाहिए तथा घर को सूखा और गर्म रखना चाहिए.
  • गर्म कपड़े पहनें – हल्के और गर्म कपड़े पहनना चाहिए .
  • तापमान परिवर्तन से बचें – पसीने में भीग जाने अथवा गर्म से अचानक ठंडे वातावरण में जाने से सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है , इसलिए अचानक तापमान परिवर्तन से बचना चाहिए .

बरसात के मौसम में भोजन ( वर्षा ऋतु में आहार )

वर्षा ऋतु में अग्नि मंद होने के कारण आहार ( भोजन ) का विशेष महत्त्व है , इसलिए इस मौसम में हल्का और सुपाच्य भोजन का सेवन करना चाहिए .

  • वर्षा ऋतु में खाने योग्य पदार्थ ( पथ्य )
  • * गर्म और ताजा पका हुआ भोजन
  • * गेहूं , जौ , चावल आदि .
  • * मूंग की दाल , सुपाच्य हरी सब्जियां आदि .
  • * पुदीना , दालचीनी , अदरक आदि से युक्त चाय .
  • वर्षा ऋतु में नहीं खाने योग्य पदार्थ ( अपथ्य )
  • * अधिक वसा युक्त और तैलीय पदार्थ
  • * डिब्बा बंद आहार और जंक फ़ूड
  • * अधिक चटपटे और नमकीन पदार्थ

बरसात के मौसम में आयुर्वेद औषधियों का प्रयोग

बरसात के मौसम में नमी, ठंडक, और कभी-कभी तापमान में बदलाव के कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती हैऔर अग्नि भी मंद हो जाती है . इससे सर्दी, खांसी, बुखार, अपच, जोड़ों का दर्द और त्वचा संबंधी समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है . आयुर्वेद के अनुसार, इस समय शरीर को संतुलित रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता ( इम्युनिटी ) को मजबूत करने के लिए कुछ विशेष जड़ी-बूटियाँ और घरेलू उपाय अपनाए जा सकते हैं. ये जड़ी-बूटियाँ न केवल बीमारियों से बचाव करती हैं, बल्कि शरीर को अंदर से मजबूत भी बनाती हैं.

तुलसी

तुलसी को आयुर्वेद में एक विशेष औषधि माना गया है, जो श्वसन तंत्र को मजबूत करती है और इम्यून सिस्टम को बढ़ाती है. तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं, जो सर्दी, खांसी और वायरल संक्रमण से बचाव करते हैं . वर्षा ऋतु में तुलसी का सेवन श्वसन तंत्र को मजबूत और फेफड़ों को स्वस्थ रखने में मदद करता है.

सेवन विधि

  • तुलसी की चाय पीने से गले की खराश मिटती है और खांसी से राहत मिलती है.
  • तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से सर्दी-जुकाम में आराम मिलता है.

अदरक

आयुर्वेद में अदरक को पाचन तंत्र के लिए प्रमुख औषधि माना जाता है . वर्षा ऋतु में अग्नि (पाचन शक्ति) कमजोर हो जाती है, जिससे अपच, गैस और पेट में भारीपन की समस्याएँ बढ़ सकती हैं. अदरक का सेवन शरीर की पाचन प्रक्रिया को तेज करता है और वात दोष को शांत करता है .

सेवन विधि

  • अदरक की चाय बनाकर पीने से पाचन प्रक्रिया सुधरती है और शरीर की गर्मी बढ़ती है, जिससे वात दोष नियंत्रित होता है.
  • अदरक का रस और शहद मिला कर चाटने से गले की खराश और सर्दी से राहत मिलती है.

त्रिफला

त्रिफला तीन प्रमुख फलों (हरड़, बहेड़ा, और आंवला) से मिलकर बनी एक आयुर्वेदिक औषधि है, जो शरीर को अंदर से डिटॉक्स करती है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है . बरसात के मौसम में इसका सेवन शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में सहायक होता है. ( यह भी पढ़ें – त्रिफला चूर्ण )

सेवन विधि

  • त्रिफला चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ रात में लेने से पाचन सुधरता है और कब्ज ( विबंध ) से राहत मिलती है।
  • त्रिफला का सेवन शरीर की इम्यूनिटी को भी बढ़ाता है, जिससे संक्रमणों से बचाव में सहायता मिलती है .

अश्वगंधा

अश्वगंधा एक शक्तिशाली औषधि है जो शारीरिक दौर्बल्य और मानसिक तनाव को कम करती है तथा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है . वर्षा ऋतु में ठंड और नमी के कारण जोड़ों में दर्द, थकान, और कमजोरी महसूस हो सकती है . अश्वगंधा का सेवन इन सभी समस्याओं से बचाव करने में सहायक होता है . ( यह भी पढ़ें – अश्वगंधा चूर्ण के फायदे )

सेवन विधि

  • अश्वगंधा पाउडर का दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक शक्ति और ऊर्जा में वृद्धि होती है .
  • अश्वगंधा का सेवन तनाव को कम करने और अनिद्रा की समस्या को दूर करने में भी सहायक होता है .

हल्दी

मसाले के रूप में जानी जाने वाली हल्दी एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल जैसे औषधीय गुणों से भरपूर होती है . वर्षा ऋतु में हल्दी का सेवन शरीर को संक्रमणों से बचाने और आंतरिक सूजन को कम करने में मदद करता है.

सेवन विधि

  • रात में हल्दी वाला दूध ( गोल्डन मिल्क ) पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है , खांसी और गले की खराश में आराम मिलता है और शरीर की सूजन कम होती है.
  • हल्दी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लेने से सर्दी और खांसी में लाभ होता है .

गिलोय

गिलोय को आयुर्वेद में “अमृता ” कहा जाता है , इसका सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर रोगों से लड़ने की शक्ति में वृद्धि कर संक्रमण से बचाव करता है . गिलोय का सेवन वर्षा ऋतु में सर्दी, खांसी और बुखार जैसी समस्याओं को रोकने में सहायक होता है तथा रक्त शुद्ध कर त्वचा सम्बंधित समस्याओं में भी लाभप्रद होता है .

सेवन विधि

  • गिलोय की ताजी बेल का रस पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता ( इम्युनिटी ) में वृद्धि होती है .
  • गिलोय का काढ़ा बनाकर पीने से बुखार और सर्दी में राहत मिलती है.

दालचीनी

दालचीनी वात और कफ दोष को संतुलित करती है और पाचन तंत्र की प्रक्रिया को सुधारने में मदद करती है. दालचीनी का सेवन रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने और शरीर को अंदर से गर्म रखने में भी सहायक होता है.

सेवन विधि

  • दालचीनी की चाय पीने से पाचन में सुधार होता है और वात दोष नियंत्रित होता है.
  • दालचीनी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से सर्दी-जुकाम में राहत मिलती है.

बरसात के मौसम में होने वाले सामान्य रोगों के घरेलू इलाज

वर्षा ऋतु में मौसम का परिवर्तन और वातावरण की नमी कई प्रकार की बीमारियों को उत्पन्न करती है . आयुर्वेद के अनुसार, वर्षा ऋतु में वात और पित्त दोष के असंतुलन के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं जठराग्नि कमजोर हो जाती है, जिससे व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस मौसम में आमतौर पर होने वाली बीमारियों में सर्दी-जुकाम, बुखार, अपच, त्वचा संक्रमण, और जोड़ों का दर्द प्रमुख हैं. इन समस्याओं से बचाव और रोकथाम के लिए आयुर्वेदिक उपाय और जीवनशैली का पालन अत्यधिक लाभकारी होता है .

सर्दी -जुकाम और खांसी के घरेलू उपाय

वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी के कारण सर्दी-जुकाम, खांसी, और श्वसन तंत्र से सम्बंधित समस्या आम बात है . ठंडी हवा, गीले कपड़े और अचानक तापमान में बदलाव से इन समस्याओं में और इजाफा होता है .

बचाव के उपाय

  • * तुलसी की चाय और अदरक का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से श्वसन तंत्र मजबूत होता है .
  • * गुनगुना पानी पियें और ठंडे पेय पदार्थों से बचें . गुनगुना पानी गले की खराश से राहत दिलाता है .
  • * खांसी जैसी समस्या होने पर रात में हल्दी वाला दूध पियें .
  • * नाक में नियमित अणु तेल या षड बिंदु तेल डालें . यह नाक और श्वसन तंत्र की सफाई करता है और सर्दी से बचाव करता है . ( यह भी पढ़ें – सर्दी जुकाम का घरेलू उपचार )

पेट सम्बंधित समस्याओं के घरेलू उपाय

वर्षा ऋतु में पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है, क्योंकि वात और पित्त दोष का असंतुलन पाचन शक्ति (अग्नि) को प्रभावित करता है जिससे अपच, गैस, और अम्लता ( एसिडिटी )जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं .

बचाव के उपाय

  • * हल्का और सुपाच्य आहार लें, जैसे कि मूंग की दाल, खिचड़ी, और दलिया। इन खाद्य पदार्थों को पचाना आसान होता है और ये पाचन शक्ति को मजबूत रखते हैं .
  • * भोजन से पहले अदरक का एक छोटा टुकड़ा चबायें या नींबू पानी में हल्दी मिलाकर पियें , जिससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है .
  • * त्रिफला का सेवन करें . त्रिफला शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और पाचन तंत्र को साफ करने में सहायक होता है . कब्ज से छुटकारा दिलाता है .

वायरल इन्फेक्शन और बुखार से बचने के घरेलू उपाय

वर्षा ऋतु में मच्छरों और अन्य कीटों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे डेंगू, मलेरिया और वायरल बुखार जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है . आयुर्वेद में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए विशेष उपाय निर्देशित किये गये हैं .

बचाव के उपाय

  • * गिलोय का सेवन इम्युनिटी को बढ़ाने और बुखार से लड़ने में अत्यधिक प्रभावी है . इसके लिए गिलोय स्वरस या गिलोय का काढ़ा पी सकते हैं अथवा गिलोय टैबलेट ( गिलोय घन वटी या संशमनी वटी ) का सेवन कर सकते हैं .
  • * नीम और तुलसी के पत्तों का सेवन करें, जो शरीर को कीटाणुओं से बचाने में मदद करते हैं .
  • * घर और आसपास की जगहों को साफ और सूखा रखें, ताकि मच्छरों को पनपने से रोका जा सके।

त्वचा सम्बंधित समस्या या फंगल इन्फेक्शन से बचने के घरेलू उपाय

बरसात के मौसम में त्वचा पर नमी और पसीने के कारण फंगल और बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है . इस मौसम में त्वचा संक्रमण, दाद, खुजली, और फोड़े-फुंसी जैसी समस्याएँ सामान्य तौर पर पायी जाती हैं ,

बचाव के उपाय

  • * नहाते समय पानी में नीम की पत्तियाँ डालकर स्नान करें . नीम में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं, जो त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं .
  • * त्वचा पर हल्दी और चंदन का लेप लगायें . यह त्वचा को साफ और संक्रमण मुक्त रखने में सहायता करता है .
  • * साफ और सूखे कपड़े पहनें . गीले या पसीने से भरे कपड़े पहनने से त्वचा में संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए नमी से बचना चाहिए .

जोड़ों के दर्द और वात रोगों से बचाव के घरेलू उपाय

वर्षा ऋतु में वात दोष के बढ़ने से जोड़ों में दर्द, सूजन, और वात रोगों की संभावना अधिक होती है . विशेष रूप से बुजुर्ग और वातज प्रकृति वाले लोगों को बरसात के मौसम में अधिक परेशानी होती है .

बचाव के उपाय

  • * अभ्यंग (तेल मालिश) नियमित रूप से करें . वात दोष को संतुलित करने के लिए तिल या सरसों के तेल से शरीर की मालिश करें .यह जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करता है . दर्द वाले स्थान पर महानारायण तेल या महा विषगर्भ तेल का भी प्रयोग किया जा सकता है .
  • * सौंठ ( सूखा अदरक ) का सेवन करें . सौंठ वात दोष को शांत करता है और जोड़ों के दर्द में राहत देता है .
  • * हल्दी वाला दूध पियें . हल्दी प्राकृतिक रूप से शोथ हर होती है, जो जोड़ों की सूजन और दर्द को कम करने में मदद करती है . ( यह भी पढ़ें – जोड़ों के दर्द की आयुर्वेदिक दवा )

मानसिक तनाव और डिप्रेसन से बचने के घरेलू उपाय

बरसात के मौसम में धूप की कमी और बदलते मौसम के कारण मानसिक तनाव और अवसाद की संभावना बढ़ जाती है . मौसम में नमी और ठंडक के कारण मनोभाव में अस्थिरता महसूस हो सकती है जिससे स्ट्रेस बढ़ सकता है .

बचाव के उपाय

  • * अश्वगंधा का सेवन करें . अश्वगंधा मानसिक तनाव को कम करने और मानसिक शांति प्रदान करने में सहायक होता है .
  • * योग और प्राणायाम का अभ्यास करें . नियमित योगासन और प्राणायाम मानसिक स्थिरता को बनाए रखने और तनाव को कम करने में मदद करते हैं।
  • * शंखपुष्पी और ब्राह्मी जैसी जड़ी-बूटियाँ मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होती हैं . इनका सेवन मानसिक संतुलन और एकाग्रता में सुधार लाता है .
  • * नियमित ध्यान या मेडिटेशन करें .

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