क्या आप जानते हैं जहरीली वनस्पति कुचला के आयुर्वेद में औषधीय उपयोग हैं और कुचला से कई औषधियां निर्माण की जाती हैं ? इसी जहरीली वनस्पति कुचला के फायदे और नुकसान से सम्बंधित जानकारी इस आर्टिकल में हम आपके साथ साझा कर रहे हैं .
कुचला का परिचय
कुचला एक विषैली वनस्पति होती है जिसे कुचेतक भी कहा जाता है . भूलवश किसी व्यक्ति द्वारा कुचला खा लेने पर इसके जहरीले प्रभाव के कारण व्यक्ति में आक्षेप और प्रलाप के लक्षण परिलक्षित होते हैं . संस्कृत में इसे विष तिन्दुक , काक तिन्दुक , कारस्कर , कुपीत आदि कहा जाता है .
गुजरात में इसे झेर कोचला , महाराष्ट्र में काजरा , केरल में कांजील बोला जाता है . अंग्रेजी में कुचला को नक्सवोमिका कहा जाता है . कुचला का पेड़ 30-40 फुट ऊंचा होता है . कुचला के पके हुए फल नारंगी रंग के होते हैं जिनमें 2-5 काले रंग के बीज होते हैं .
कुचला शोधन विधि
चूंकि कुचला के फल एवं बीज विषैले होते हैं इसलिए औषधि निर्माण से पूर्व कुचला को शुद्ध किया जाता है .कुचला शोधन विधि निम्न लिखित है .
- कुचला के बीजों को कपड़े की पोटली में दोलायन्त्र में गाय के दूध के साथ पका कर शुद्ध करते हैं . शोधन के लिए लगभग तीन घंटे पकाया जाता है .
- कुचला के बीजों को गोमूत्र में डाल कर भी शोधन किया जाता है . एक सप्ताह तक रोजाना ताजा गोमूत्र में रख कर शोधन किया जाता है .
कुचला का औषधि प्रयोग
आयुर्वेद में कुचला से कई प्रकार की औषधियों का निर्माण किया जाता है जिनका विभिन्न रोगों में आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा उपयोग किया जाता है . कुचला के संयोग से बनी आयुर्वेदिक औषधियां निम्नलिखित हैं .
- विष तिन्दुक वटी
- अग्नितुण्डी वटी
- कृमि मुद्गर रस
- लक्ष्मी विलास रस
- नव जीवन रस
- वातारि रस
- कुचला घृत
- कुचला पाक
कुचला के फायदे और नुकसान
अन्य वनौषधियों के संयोग से कुचला के औषधीय प्रयोग वात व्याधियों यथा संधि वात , कंप वात , गृध्रसी , कटि शूल , पक्षाघात आदि में किया जाता है . आइये जानते हैं कुचला के फायदे और नुकसान क्या क्या हैं .
कुचला के फायदे
कुचला का आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता रहा है . वात विकार , उदर विकार , शोथ , शूल आदि में कुचला के औषधीय उपयोग हैं . कुचला के फायदे निम्न रोगों में प्राप्त होते हैं .
संधि वात में कुचला का प्रयोग
कुचला 125 मिग्रा. , लौह भस्म 125 मिग्रा. एवं शुद्ध गुग्गुलु 1 ग्राम खरल में घोट कर रास्नादि क्वाथ के साथ सेवन करने से संधि वात के दर्द और सूजन में फायदा होता है .
कमर दर्द ( कटि शूल ) में कुचला से लाभ
अश्वगंधा , शतावरी . विधारा , सौंठ और अजवायन के साथ कुचला को को पीस कर 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से वायु विकार से उत्पन्न कमर दर्द में बहुत लाभ होता है .
लकवा में कुचला के फायदे
कुचला को जला कर भस्म बना कर बराबर काली मिर्च के चूर्ण के साथ पान के पत्ते में सेवन करने से लकवा के रोगी को लाभ होता है . ( यह भी पढ़ें – काली मिर्च के फायदे )
शारीरिक कमजोरी में कुचला के लाभ
शुद्ध कुचला चूर्ण , वैक्रान्त पिष्टी और पिप्पली चूर्ण शहद या जल के साथ सेवन करने से शारीरिक कमजोरी नष्ट होती है .
हृदय रोगों में कुचला का उपयोग
श्रृंग भस्म और शुद्ध कुचला चूर्ण बराबर मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से हृदय रोगों में लाभ होता है .
सायटिका ( गृध्रसी ) रोग में कुचला लाभकारी
सायटिका की विकृति होने पर कुचला चूर्ण और अभ्रक भस्म शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है . ( यह भी पढ़ें – सायटिका आयुर्वेदिक उपचार )
पेट दर्द में कुचला का लाभ
कुचला 125 मिग्रा. एवं लौंग 50 मिग्रा. को अदरक के रस के साथ सेवन करने से उदर शूल ( पेट दर्द ) नष्ट होता है . ( यह भी पढ़ें – पेट दर्द का घरेलू इलाज )
खूनी बवासीर में कुचला का फायदा
शुद्ध कुचला चूर्ण मिश्री मिला कर जल के साथ सेवन करने से रक्तार्श ( खूनी बवासीर ) में लाभ होता है .
कुचला से विषम ज्वर में लाभ
कुचला चूर्ण एवं काली मिर्च का चूर्ण तुलसी के काढ़े के साथ सेवन करने से विषम ज्वर ( मलेरिया ) में लाभ होता है .
नपुंसकता में कुचला से लाभ
शुद्ध कुचला चूर्ण एवं अश्वगंधा चूर्ण जल के साथ सेवन करने से नपुंसकता में लाभ होता है . ( यह भी पढ़ें – अश्वगंधा के फायदे पुरुषों के लिए )
पेट में अफारा होने पर कुचला का उपयोग
पेट में अफारा होने पर शुद्ध कुचला का चूर्ण कुमार्यासव के साथ सेवन करने से अफारे का दर्द मिटता है . ( यह भी पढ़ें – कुमार्यासव के फायदे और नुकसान )
कुचला के नुकसान
कुचला का विषैला प्रभाव होता है इसलिए हमेशा शुद्ध कुचला का उचित मात्रा में आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देशानुसार ही सेवन करना चाहिए . स्वेच्छा से कुचला का सेवन अनेक शारीरिक नुकसान का कारण बन सकता है . आइये जानते हैं कुचला के नुकसान किस तरह हो सकते हैं और कुचला के सेवन में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए .
- अशुद्ध कुचला के त्वचा के सम्पर्क मात्र से त्वचा नीली पड़ जाना या त्वचा में चकत्ते हो जाना जैसी विकृतियाँ हो सकती हैं .
- कुचला की अतिमात्रा से लिवर को ख़तरा हो सकता है .
- कुचला के दुष्प्रभावों में ऐंठन , गर्दन में जकड़न , बेचैनी आदि हो सकते हैं . ( यह भी पढ़ें – गर्दन का दर्द कैसे ठीक करें )
- गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए इसे सुरक्षित नहीं माना जाता .
- अशुद्ध कुचला के सेवन से उल्टी , बेचैनी , आक्षेप , प्रलाप आदि समस्याएँ हो सकती हैं .
दोस्तों , आयुर्वेद और साहित्य ब्लॉग के इस लेख में हमने कुचला के फायदे और नुकसान जाने . अगले लेख में अन्य किसी उपयोगी और रोचक जानकारी के साथ हाजिर होंगे .
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