आयुर्वेद चिकित्सा में काष्ठ औषधियों के साथ भस्म औषधियों का विशेष महत्त्व है . आज हम इस आर्टिकल में ऐसी ही एक भस्म औषधि वंग भस्म के फायदे , नुकसान और सेवन विधि के बारे में जानकारी शेयर कर रहे हैं . आशा है यह जानकारी हमारे पाठकों के लिए उपयोगी होगी . आयुर्वेद और स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याओं के समाधान और जानकारी के लिए पढ़ते रहिए हमारा ब्लॉग ” आयुर्वेद और साहित्य ” .
वंग भस्म क्या है ?
वंग भस्म एक आयुर्वेदिक दवा है जो वंग ( टिन ) धातु का शोधन करने के बाद भस्म निर्माण प्रक्रिया से तैयार की जाती है . इसके निर्माण में वंग धातु , तिल तेल , गो मूत्र , हरिद्रा चूर्ण , तक्र ( छाछ ) आदि द्रव्यों का उपयोग किया जाता है . आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा मूत्र पथ के संक्रमण , जननांग सम्बंधित विकार , यौन क्षमता बढाने आदि में वंग भस्म का प्रयोग किया जाता है .
वंग भस्म के फायदे नुकसान
वंग भस्म का सामान्यतः मूत्र विकारों , यौन रोगों आदि की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है . यह एक भस्म औषधि है इसलिए हमेशा आयुर्वेदिक डॉक्टर के परामर्श और दिशा निर्देशानुसार सेवन करना चाहिए अन्यथा हानि की भी संभावना होती है .आइये जानते हैं आयुर्वेदिक दवा वंग भस्म के फायदे नुकसान क्या हैं .
वंग भस्म के फायदे
प्रमेह , मधुमेह , प्रदर . मूत्र विकार , यौन दौर्बल्य आदि रोगों की चिकित्सा में आयुर्वेद औषधि वंग भस्म का प्रयोग किया जाता है . योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देशानुसार प्रयोग करने से वंग भस्म के फायदे निम्नलिखित रोगों में प्राप्त होते हैं .
मूत्र विकारों में वंग भस्म के लाभ
मूत्र विकार ( पेशाब से सम्बन्धित समास्याओं ) एवं मूत्र मार्ग में संक्रमण होने की स्थिति में वंग भस्म का सेवन लाभप्रद होता है .
शीघ्र पतन एवं स्वप्न दोष में वंग भस्म के फायदे
पुरुषों में शीघ्र स्खलन या स्वप्न दोष की शिकायत होने पर अन्य औषधियों के साथ वंग भस्म का सेवन कराने से रोगी को लाभ होता है .
ल्यूकोरिया में वंग भस्म का उपयोग
महिलाओं में श्वेत प्रदर या रक्त प्रदर होने पर पुष्यानुग चूर्ण या नागकेसर चूर्ण के साथ वंग भस्म का प्रयोग करने से लाभ होता है . ( यह भी पढ़ें – ल्यूकोरिया की आयुर्वेदिक दवा )
डायबिटीज में वंग भस्म का प्रयोग
मधुमेह ( डायबिटीज ) रोगियों के शारीरिक दौर्बल्य ( कमजोरी ) में वंग भस्म का सेवन करने से बल की वृद्धि होती है तथा थकान दूर होती है . ध्यान रहे इसका सेवन आयुर्वेदिक डॉक्टर के निर्देशानुसार सीमित अवधि तक करना चाहिए , वंग भस्म का अधिक सेवन किडनी के लिए नुकसानदायक हो सकता है . ( यह भी पढ़ें – डायबिटीज के लक्षण और उपाय )
वंग भस्म से नपुंसकता में लाभ
नपुंसकता या यौन उत्तेजना के अभाव में वंग भस्म का सेवन करने से लाभ होता है और कामोत्तेजना में वृद्धि होती है .
वंग भस्म से शारीरिक और मानसिक क्षमता में वृद्धि
वंग भस्म का सेवन करने से शारीरिक और मानसिक कमजोरी दूर होती है तथा बल और बुद्धि का विकास होता है .
कास – श्वास में वंग भस्म का उपयोग
वंग भस्म कफ विकार को दूर करता है तथा कास ( खांसी ) और श्वास ( दमा ) से राहत प्रदान करता है . ( यह भी पढ़ें – दमा की आयुर्वेदिक दवा )
एनीमिया में वंग भस्म से लाभ
एनीमिया ( खून की कमी ) होने पर लौह भस्म , पुनर्नवा मंडूर के साथ वंग भस्म का सेवन करने से वंग भस्म में बल्य गुण होने के कारण शीघ्र लाभ होता है . ( यह भी पढ़ें – महिलाओं में खून की कमी दूर करने के उपाय )
वंग भस्म के नुकसान
वंग भस्म एक आयुर्वेदिक भस्म औषधि है इसलिए हमेशा आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श एवं निर्देशानुसार ही सेवन करना चाहिए . बिना चिकित्सकीय सलाह स्वेच्छा से इसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद हो सकता है . आइये जानते हैं वंग भस्म के नुकसान क्या हो सकते हैं और इसके सेवन में क्या सावधानियां रखनी चाहिए .
- वंग भस्म का अधिक सेवन करना किडनी के लिए घातक हो सकता है इसलिए आयुर्वेद चिकित्सक के निर्देशानुसार उचित मात्रा और सीमित अवधि तक ही सेवन करना चाहिए .
- छोटे बच्चों में वंग भस्म का प्रयोग नहीं करना चाहिए .
- गर्भवती महिलाओं को वंग भस्म के सेवन से बचना चाहिए अन्यथा अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए .
- वंग से एलर्जी होने पर वंग भस्म का सेवन नहीं करना चाहिए .
वंग भस्म सेवन विधि
वंग भस्म एक आयुर्वेद औषधि है इसलिए हमेशा आयुर्वेदिक डॉक्टर द्वारा निर्देशित मात्रा में सीमित अवधि तक सेवन करना चाहिए . आम तौर पर वंग भस्म का प्रयोग अन्य आयुर्वेदिक औषधियों के साथ कराया जाता है . वंग भस्म की सेवन विधि सामान्यतः निम्नानुसार है .
मात्रा – 125- 250 mg
अनुपान – शहद , घी , मलाई आदि ( चिकित्सक के निर्देशानुसार )
दोस्तों , आज के लेख में हमने आयुर्वेद औषधि वंग भस्म के फायदे , नुकसान और सेवन विधि से सम्बन्धित जानकारी साझा की . अगले लेख में अन्य किसी उपयोगी और रोचक जानकारी के साथ हाजिर होंगे .
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