गमों की रात को ढलना है

अंधियारों को भूल कर उजालों की खबर ले ले
खुशी का सूरज निकलेगा गमों की रात को ढलना है ।।
नजर उठा और पांव बढ़ा गिरने का डर छोड़ दे
चल पड़ जानिब ए मंजिल गिर गिर कर सम्हलना है ।।
बाहर का मौसम बुरा जो हो तेरा उस पर जोर नहीं
यह मौसम भी बदल जायेगा पहले खुद को बदलना है ।।
आज का चैन छोड़े बिना कल सुनहरा न होगा
कदम डगमगाये ना कभी गर कांटों पर भी चलना है l।
” राजन ” बंद घरों में हवा धूप आया नहीं करती
दरवाजों को खोल कर अब बाहर निकलना है ।।
डॉ. राजेन्द्र कुमार “राजन”

Leave a comment